आडंबर शब्द की जितनी कड़ी आलोचना की जाती है, उतनी ही उसके प्रति लिप्सा दिन प्रति दिन विकसित होती दृष्टिगत हो रही है। "सादा जीवन उच्च विचार" जैसी किताबी बातों का आज के आधुनिक व्यवहारिक जीवन में कोई स्थान नहीं है। भ्रष्टाचार की नींव बनकर इस आडंबर ने नैतिकता और व्यवहारिक मूल्यों की परिभाषा ही परिवर्तित कर दी है।"हम किसी से कम नहीं हैं" की होड़ ने इंसान की सोचने व समझने की शक्ति पर विचित्र प्रहार किया है। समाज में अपने"status" को बनाए रखने के लिए व्यक्ति किसी भी हद तक गिरने को , हर तरीक़े का समझौता करने को तैयार रहता है,चाहे ऐसा करने में उसकी इंसानियत का हनन ही हो जाए। बच्चों की शादी तो फिर भी बड़ा उत्सव है, बच्चे के जन्मदिवस और सामाजिक मिलन जैसे आयोजनों में भी ,पहनने-ओढ़ने और लेने-देने की प्रतिस्पर्धा ने सामाजिक मर्यादा और मूल्यों का उल्लंघन किया है।देश में भ्रष्टाचार की आग सुलगाने के लिए राजनीति और नेता ज़िम्मेदार हैं तो आडम्बर का चोला पहना कर घर-घर तक उस आग को पहुँचाने में हम सब भी काफ़ी हद तक क़सूरवार हैं। हम बदलेंगें तो जग बदलेगा, हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा।
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