समाज की गंदगी को
बुहारता
दूसरों के घरों को
सँवारता
रूखे बाल, सूनी आँखों वाला
वह दलित बालक
"दीदी कचरा दो" की
पुकार लगाता
चिपके पेट की आग मिटाने
कचरे के डिब्बे में
बासी, सूखी
रोटी के टुकड़ों को
तलाशता
धर्मनिरपेक्षता की
हँसी उड़ाता
भारत का भविष्य
अपने निर्मूल अस्तित्व की ख़ातिर
ज़िंदगी से संघर्ष
करता जाता
जीने के लिए
पल-पल मरता जाता
बेबस निगाहों से
बहते आँसू के
घूँट से अपनी प्यास
बुझाता जाता
बेरहम दुनिया के
सितम चुपचाप
सहता जाता। !
बुहारता
दूसरों के घरों को
सँवारता
रूखे बाल, सूनी आँखों वाला
वह दलित बालक
"दीदी कचरा दो" की
पुकार लगाता
चिपके पेट की आग मिटाने
कचरे के डिब्बे में
बासी, सूखी
रोटी के टुकड़ों को
तलाशता
धर्मनिरपेक्षता की
हँसी उड़ाता
भारत का भविष्य
अपने निर्मूल अस्तित्व की ख़ातिर
ज़िंदगी से संघर्ष
करता जाता
जीने के लिए
पल-पल मरता जाता
बेबस निगाहों से
बहते आँसू के
घूँट से अपनी प्यास
बुझाता जाता
बेरहम दुनिया के
सितम चुपचाप
सहता जाता। !
No comments:
Post a Comment