Tuesday, May 24, 2016

कर्तव्य निभाएँ

                                                       अपना कर्तव्य निभाएँ

नीलम अपने ससुर के निधन के तेरहवें दिन अपने मित्रों से मिलने सजधज कर निकलने को तैयार हो रही थी। उसकी ताई सास ने उसकी सास से कहा कि उसे समझाए कि इस समय दोस्तों से मिलने जाना अच्छा नहीं लगेगा। सास ने कहा, " मेरी बात बहू मानेगी नहीं, बोलकर बेकार अपना अपमान क्यों करवाऊँ ?" देवरानी की बात ने ज़ेठानी को सोचने पर मजबूर कर दिया। ताईसास ने बहू से कहा, " बेटा तुम अपने दोस्तों से मिलना चाहती हो तो उन्हें घर पर बुलवा लो, क्योंकि तुम्हारे ससुर को गुज़रे अभी बारह दिन ही बीते हैं, ऐसे में तुम घर से बाहर घूमोगी तो लोग बेकार की बातें बनाएँगें"। ताईसास की बात को अनसुना कर नीलम घर से निकल गई। उसकी सास ने अपनी ज़ेठानी से कहा-"देखा ना जीजी, आपकी बेइज़्ज़ती करके चली गई। मैं जानती थी वो मानेगी नहीं। तभी तो आपको भी कहने से मना कर रही थी।"
ज़ेठानी ने देवरानी को देखा और बोली-" इस नई पीढ़ी की धृष्टता के सामने क्या हम अपना कर्तव्य भूल जाएँ ? बड़ों का फ़र्ज़ है अपने से छोटों को सही राह दिखलाना, हमें अपने दायित्व को निभाना चाहिए, परिणाम की चिंता ऊपरवाला करेगा।"
आज के अभिभावक अपने बच्चों से कुछ भी कहने से घबराते हैं। अपनी कमज़ोरी को छिपाने के लिए उन्हें  अक्सर यह कहते हुए सुना है कि ये आजकल के बच्चे हैं, इन्हें कुछ भी कहने से पहले सोचना पड़ता है। पीढ़ियों के बीच विचारों का मतभेद  हर युग और हर काल में रहा है और रहेगा, इसके चलते बुज़ुर्ग अपने अनुभव के ज्ञान से युवा पीढ़ी को वंचित नहीं रख सकते। बच्चों का मार्गदर्शन करना बड़ों का उत्तरदायित्व होता है, जिसका निर्वाह उन्हें हर हाल में करना चाहिए। उचित-अनुचित, सही-ग़लत की शिक्षा देने से पहले ही नई पीढ़ी को दोषी क़रार देना ठीक नहीं है। बड़े अपना फ़र्ज़  अदा करें और बच्चों को अपना कर्तव्य निभाने का मौक़ा दें।

Thursday, May 12, 2016

"सॉरी "

"सॉरी" शब्द का प्रयोग इतना आम हो गया है कि उसके अर्थ की विशेषता कहीं खो गई है। बच्चे ने किसी का खिलौना या कोई सामान ले लिया तो हम तुरंत उससे सॉरी बुलवा कर अपने दायित्व से मुक्त हो जाते हैं। मात्र सॉरी बोलने से बच्चे को अपनी ग़लती का अहसास कितना होता है यह विचारणीय है।
आज वस्तु स्थिति यह है कि इंसान बिना ग़लती के सॉरी बोलने में जरा भी विलंब नहीं करता है। उसे पता है कि उससे भूल नहीं हुई है तब दूसरे व्यक्ति की मन की शांति के लिए माफ़ी माँगने में उसे कोई संकोच नहीं होता है। परंतु वास्तव में अगर हमसे कोई ग़लत बात हो जाए तब सॉरी बोलने से हमारे आत्मसम्मान को ठेस लगती है। हम अपनी बात पर पर्दा डालने की, उसका सही अर्थ समझाने की पूरी कोशिश करते हैं परंतु क्षमा माँगने से कतराते हैं। पिछले दिनों आमिर खान संबंधित विवाद में हमने कुछ ऐसी ही स्थिति को देखा था।
अंजाने में कही हमारी किसी बात से अगर किसी का मन दुखी हुआ हो तो हम सॉरी कहते हैं। अथार्थ अपने कथन द्वारा किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का हमारा कोई इरादा नहीं था, फिर भी किसी को बुरा लगा हो तो हम क्षमायाचना करते हैं। यही भारतीय संस्कृति और परंपरा है।
अपनी भूल स्वीकार कर सुधारने से हमारा क़द छोटा नहीं होता, बल्कि और ऊँचा हो जाता है। हमारा मन तो ग्लानिमुक्त होता ही है, दूसरे के मन को सुकून पहुँचा ,हमारा मन भी हर्षित होता है।

Sunday, May 1, 2016

शूल

पीछे से ...
आनेवाली,
पद्चाप को,
अनदेखा करने की,
तुम
कभी न करना
भूल ...!
जाने कब...?
आगे निकल...
वह
बन जाए ...
तुम्हारे ही पथ का
शूल ....!