Monday, April 25, 2016

कर्मठ

       
समय नहीं कहकर जो,
कर्तव्य से जी चुराते हैं
प्रकृति, प्रगति और निज प्रवृत्ति का
सम्मान न वे कर पाते हैं !

हर कार्य में रहे जो प्रस्तुत,
सच्चा व्यस्त वही होता है ।
पंख फैलाने को हो तत्पर
उन्मुक्त उड़ान वही भरता है।

करना है फिर क्या असमंजस ?
बीता समय नहीं आता है।
मर्यादा का झूठा बंधन,
बचने को बाँधा जाता है।



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