आँधियाँ ख़ूब चली..
तूफ़ान भी हुआ न कम,
उखड़ जाने की ज़िद में,
हिल गए...
सभी बंधन !
क्या होगा..?
क्या न होगा..?
सोच कर...
घबराता था,
अंतर्मन !
इसी दुविधा में..
कई दिनों तक,
बेचैन रहा..
मेरा मन !
वातावरण ...
शांत..
स्निग्ध सा है !
हवाएँ भी हैं नम..
हल्के अँधियारे के बीच,
स्पष्ट...
दिखता है कम..!
दिल करता है
देखूँ...
शायद...
जीवित हो..
कोई ...
धड़कन !
बढ़े हाथों को,
लेकिन...
रोक देता है,
कंपन..!
सोचता हूँ...
पास रह कर
दूर रहने से,
बेहतर है...
दूर रह कर
पास रहना !
जिस तरह...
नदी के ...
दोनों तट
आमने-सामने
रह कर भी,
नहीं मिलने का,
करते नहीं ग़म !
भावनाओं के पानी से
फिर भी... ,
जुड़े रहते ...
हरदम ...!
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