अभिव्यक्ति वैचारिक आदान-प्रदान का ऐसा साधन है जो मनुष्य को अपनी बात औरों तक पहुँचाने का सुख प्रदान करती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, हमारे भारतीय संविधान के निर्माणकर्ताओं ने इसे मौलिक अधिकार के रूप में सुरक्षित किया। प्रजातंत्र के सफल संचालन हेतु जन-मानस को निर्भीक हो अपने मत व विचार सबके सम्मुख रखने की स्वतंत्रता होनी भी चाहिए। इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ग़लत उपयोग न हो, इसे अपना मौलिक कर्तव्य मान कर, इसके प्रति हम सबको सचेत रहना चाहिए। 'freedom of speech' के नाम पर देश के विशिष्ट पदाधिकारियों पर कीचड़ उछाल, उनके पद का अनादर करने की आज़ादी पर अंकुश लगाना होगा। इसका यह अर्थ नहीं है कि भ्रष्ट नेताओं के कुकर्मों को चुपचाप सह लिया जाए। प्रजातंत्र में जनमत प्रभावपूर्ण होता है, जिसमें राजा को रंक और रंक को राजा बनाने की ताक़त होती है। जनता की इस ऊर्जा का सही व्यय हो, अपशब्दों के व्यर्थ वाक्-युद्ध में अपव्यय न हो। हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, दूसरे के दिल का घाव न बन जाए, इसका पूरा ध्यान रखना पड़ेगा।
No comments:
Post a Comment