Thursday, May 12, 2016

"सॉरी "

"सॉरी" शब्द का प्रयोग इतना आम हो गया है कि उसके अर्थ की विशेषता कहीं खो गई है। बच्चे ने किसी का खिलौना या कोई सामान ले लिया तो हम तुरंत उससे सॉरी बुलवा कर अपने दायित्व से मुक्त हो जाते हैं। मात्र सॉरी बोलने से बच्चे को अपनी ग़लती का अहसास कितना होता है यह विचारणीय है।
आज वस्तु स्थिति यह है कि इंसान बिना ग़लती के सॉरी बोलने में जरा भी विलंब नहीं करता है। उसे पता है कि उससे भूल नहीं हुई है तब दूसरे व्यक्ति की मन की शांति के लिए माफ़ी माँगने में उसे कोई संकोच नहीं होता है। परंतु वास्तव में अगर हमसे कोई ग़लत बात हो जाए तब सॉरी बोलने से हमारे आत्मसम्मान को ठेस लगती है। हम अपनी बात पर पर्दा डालने की, उसका सही अर्थ समझाने की पूरी कोशिश करते हैं परंतु क्षमा माँगने से कतराते हैं। पिछले दिनों आमिर खान संबंधित विवाद में हमने कुछ ऐसी ही स्थिति को देखा था।
अंजाने में कही हमारी किसी बात से अगर किसी का मन दुखी हुआ हो तो हम सॉरी कहते हैं। अथार्थ अपने कथन द्वारा किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का हमारा कोई इरादा नहीं था, फिर भी किसी को बुरा लगा हो तो हम क्षमायाचना करते हैं। यही भारतीय संस्कृति और परंपरा है।
अपनी भूल स्वीकार कर सुधारने से हमारा क़द छोटा नहीं होता, बल्कि और ऊँचा हो जाता है। हमारा मन तो ग्लानिमुक्त होता ही है, दूसरे के मन को सुकून पहुँचा ,हमारा मन भी हर्षित होता है।

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